Saturday, December 29, 2012

मन के गुबार

  1. मन के गुबार दबा के क्या होगा
    दर्द कि इंतिहा जगाँ क्या होगा
    जमाने में हजार रहनुमा है
    अनजान बने तो भला क्या होगा
    दूरियां मिटती है मिटाने से
    दिलो से दूरियां बना क्या होगा
    एक कदम तुम बड़ों
    फिर देखो साथ यह जहां होगा

    Photo: तुम सोच हो मेरी 
जिसे सोच कर मै कभी उदास 
कभी दूर कभी नितांत पास
कभी एक मीठा एहसास 
तुम्हारी अहमियत इतनी ख़ास
की मै अपने वजूद को अधूरा पाता हूँ
जब तुम्हारी सोच से दूर जाता हूँ
नहीं जनता तुम क्या सोचती हो
पर मै सोचता हूँ तुम जरूर सोचती हो
वैसे ही जैसे मै सोचता हूँ
हर पल हर छ्ड़
क्योँकि तुम सोच हो मेरी..........

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