- सफर की शुरुवात और तुम थक गए
ज़िदगी के पहले पड़ाव पर छक गए
दौड़ अभी बाकी है तुम्हें चलना ही होगा
विश्वास कि डोर थाम कुछ करना ही होगा
जिंदगी में हासिल कब मौत भी आसानी से
और मौत को कब पनाह लंबी जिंदगानी से
...कल होगा वही जो चाहा जो किया जो सोचा
किया नहीं तो तक़दीर को उस पर क्या कोचा
बदलते माहौल में बदलने को तू अभी बाकी है
जीत हार के पन्नो पर तेरी करनी ही बाकी है
तो किस हाथ की करें प्रतिछा तेरा साथ बाकी है
क्रांति बिगुल बजा बस तेरा ही स्वर बाकी है
चलो नौजवां किस उधेड़बुन में तुम लग गए
सफर की शुरुवात और तुम थक गए
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
सफर की शुरुवात
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