- खो गयी कहीं यह ज़िदगी
ढूँढता फिर रहा मै पूरी जिंदगी
अंतहीन है या कभी हल होगा
इस दर्द का क्या कभी अंत होगा
जिज्ञासा जानने की तुमको भी
पीड़ित प्रतिछा मुझको भी
...कब थमेगा आंधियो का दौर भाई
कब तक सहेंगे बेवजह की जगहँसाई
लोग हारने लगे है उम्मीदों से
गिले शिकवे रहे अब जिंदगी से
कि जिंदगी सिवा दर्द कुछ भी नहीं
हँस सके ऐसी तो किस्मत नहीं
सिर्फ़ ढोहने के लिए जिये तो क्या
की मज़बूरियों का मंज़र हर पल यहा
गर बदलने है हालत तो ख़ुद बदलना होगा
गिर गए तो क्या उठ कर फिर चलना होगा
बदहाली एक दिन की नहीं भाई
सदियों बिगाड़ने में है लगाई
किसी पर दोष मड़के अब क्या होगा
प्रयासों का भी मूल्यांकन करना होगा
कभी तबीयत से पत्थर ना उछला होगा
खाक आसमा के सीने में सुराख होगा
दो और दो चार की तर्ज पर
तुम मिलो हम मिलें आगे बड़ कर
किया क्या हमने सही ग़लत
छोड़ कर अपने अहम् की लत
कल को सँवारने की कसम खाए
ताकि जिंदगी और ना ठोकर खाए
तभी इस अंतहीन दर्द का अंत होगा
जीने का सही मायने मुकम्मिल होगा
गर बदलने है हालत तो ख़ुद बदलना होगा
गिर गए तो क्या उठ कर फिर चलना होगा
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
जिज्ञासा जानने की
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