- धरती की गोद में बो दिए है बीज
नफरत के, भूख के, सियासत के
चिंगारी भड़का दी तुमने जालिम
इस वहशी जात पाँत के दंगों से
भर दिया तुमने इस धरा का दामन
गहराई तक झगड़ों की कबायत से
...इतने उलझ गए हम सारे की
निकल न सके तुम्हारी सियासत से
यह ऐसी वैसी चल नही कि गोया
की कोई भला समझे आसानी से
रोजी रोटी में तक मुश्किल हो गयी
आज फाके पड़े आज कंगाली से
रैन बसेरे को तरसे यह जीवन
घड़िया बीते कुंठा और बदहाली से
किस भारत का सपना था देखा
क्या हालात बनाए तुमने दुश्वारी से
धरती की गोद में बो दिए है बीज
नफरत के, भूख के, सियासत के
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Monday, August 13, 2012
बीज नफरत के, भूख के, सियासत के
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment