Wednesday, May 16, 2012

मेरे महबूब


मेरे महबूब जब तुझे भुला ही नहीं तो क्या याद करूँ
ख़ुद गिरफ्त में दिल दिया तो सनम क्या आज़ाद करूँ
तेरी रुसवाइयों पे कुर्बां दिल कहे न कोई फरियाद करूँ
सोचता हूँ दर्दे दिल कि दवा दर्द से ही इजाद करूँ
ख़ुद के जख्मों पर नज्म लिखूँ ख़ुद ही इरशाद करूँ
नाकाम सही पर मुहब्बत तुमसे और क्या मुराद करूँ
हर खुशी हो मुकम्मल तेरी खुदा से यही फरियाद करूँ
मेरे महबूब जब तुझे भुला ही नहीं तो क्या याद करूँ

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