Wednesday, May 16, 2012

दरारें


दीवारों से झाकती दरारें
इतनी महीन जो दिखाई भी न दे !
पर दरारें कमजोर करती है !
आत्मा झिकझोर देती है !
क्योँकि गौर से देखो
या ना देखो
दरारें अपनी जगह नहीं बदलतीं नहीं !
जहां है वहा भी रहती
समय के साथ
जहां नहीं थी
वहा भी अपना निशान छोड़ जाती है !
जब समय था तब भरी नहीं
शुरुवात में था संभव
जो आज हुआ असंभव!
कौन करे पहल
और वजह को तलासती
हमारी सोच दरारों को
विस्तार देती है !
जो दिखती तो महीन थी
पर समय के साथ
दीवार ही फाड़ देती है !
फिर भी इनसान
बेफिक्र दरार को करता नजरअंदाज है !
देश बँटा, प्रदेश बँटा,
घर और खानदान बँटा
महज दरारों कि अनदेखी से !
क्योकि दीवारों से झाकती दरारें
इतनी महीन जो दिखाई न दीं !
पर हश्र पर गयी नजर
तो सिर्फ़ और सिर्फ़
दरारो ने तबाही दी !

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