Wednesday, May 16, 2012

ऊँचाइयाँ


अभी बहुत दूर है ऊँचाइयाँ
मै आज मुठ्ठी में आसमान चाहती हूँ
देख् ली बादलो की परछाईयाँ
इन्हे अपनी आँखों में बसाना चाहती हूँ
यह श्रंखला लगे छोटी मुझे
मै पूर्ण हिमालय गोद भरना चाहती हूँ
विस्मित जो कल्पना करे मुझे
उसी को आज साकार बनाना चाहती हूँ
माना है प्रथम चरण ही सही
पर पवन संग गीत गुनगुनाना चाहती हूँ
मै प्रकृति की हरियाली से ही
आज अपने मनोरम वस्त्र सजाना चाहती हूँ
मेरी खुली बाहों का है यही संकेत
परिंदो की तरह गगन में उड़ जाना चाहती हूँ
अभी बहुत दूर है ऊँचाइयाँ
मै आज मुठ्ठी में आसमान चाहती हूँ

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