प्रिय मै मनमुग्ध मोहित,
तुम ही बसती हो मेरे अंतःकरण में।।
मन व्याकुल करूँ प्रतिक्षा,
पुष्प गुथु मै तेरे सुरमई कुंतल में।।
दहनशील प्रतिछा की घड़िया,
नित विभावरी तेरी राह् निहारु।।
हो मिलन प्रिय तो अशक्तं हृदय से,
विकट वेदना भार उतारू।।
मन उत्सोक देख प्रिय तेरे,
चंचल चपल मन भावन से नैना।।
सजल नेत्र से मद्धयम शोभित,
पूनम कि नवल चांदनी रैना।।
तुमसे जीवन का स्वार्गिक आनंद,
स्विकार करो प्रिय प्रेमनिमंत्रण।।
तुम संग होगा मिलन सोच रोमांचित,
वो प्रेम प्रीति,अनुरक्ति छ्ण।।
तुम जीवन की अलभ्यि कोष,
बसों जीवन के समस्त चरण में।।
मेरा मन मस्तिष्क अनुचर प्रिय तेरा,
नही रहा अब स्वःनियंत्रण में।।
प्रिय मै मनमुग्ध मोहित,
तुम ही बसती हो मेरे अंतःकरण में।।
मन व्याकुल करूँ प्रतिक्षा,
पुष्प गुथु मै तेरे सुरमई कुंतल में।।
तुम ही बसती हो मेरे अंतःकरण में।।
मन व्याकुल करूँ प्रतिक्षा,
पुष्प गुथु मै तेरे सुरमई कुंतल में।।
दहनशील प्रतिछा की घड़िया,
नित विभावरी तेरी राह् निहारु।।
हो मिलन प्रिय तो अशक्तं हृदय से,
विकट वेदना भार उतारू।।
मन उत्सोक देख प्रिय तेरे,
चंचल चपल मन भावन से नैना।।
सजल नेत्र से मद्धयम शोभित,
पूनम कि नवल चांदनी रैना।।
तुमसे जीवन का स्वार्गिक आनंद,
स्विकार करो प्रिय प्रेमनिमंत्रण।।
तुम संग होगा मिलन सोच रोमांचित,
वो प्रेम प्रीति,अनुरक्ति छ्ण।।
तुम जीवन की अलभ्यि कोष,
बसों जीवन के समस्त चरण में।।
मेरा मन मस्तिष्क अनुचर प्रिय तेरा,
नही रहा अब स्वःनियंत्रण में।।
प्रिय मै मनमुग्ध मोहित,
तुम ही बसती हो मेरे अंतःकरण में।।
मन व्याकुल करूँ प्रतिक्षा,
पुष्प गुथु मै तेरे सुरमई कुंतल में।।
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