Wednesday, May 16, 2012

गुमसुम दुबका नन्हा सा एक बच्चा


मै तो गुमसुम दुबका नन्हा सा एक बच्चा था
जब पहले पहल आँख खुली तब अंनभिग्य था
अफरा तफरी और इस दुनिया की बैचैनी
करनी होंगी मुझको भी नजरे अपनी पैनी
न पता था दुश्वारियो से हर मोड़ होगी मुलाकात
तड़पते दिल को जाने सहने होंगे कितने आघात
दुविधाओ से भरा हुआ जीवन का हरेक पहर
ख़ौफजदा जिंदगी और मौत बाँटता हुआ शहर
दिन की दौड़ धूप बेमतलब हाथ हार के मंज़र
बनाके अनचाही रंजिशो का हिस्सा सोप दिए खंजर
एक दूजे को खत्म करो भूख हुई हाबी मन पर
कौन सच्चा कौन झूठा क्या गुनाह किसके सर पर
कभी साजिसो के शिकार कभी ख़ुद शिकारी बन गया
जन्मा था इनसान बन कर क्यू हैवान बन गया
जन्म लिया जब हमने तब कब ऐसा सोचा था
समझा था जिसे जिंदगी वह वाकई यह धोखा था
जब पहले पहल आँख खुली तब अंनभिग्य था
मै तो गुमसुम दुबका नन्हा सा एक बच्चा था

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