झरोखों से आती मंद पवन
कभी तो समझ मेरा मन
घिरी घटाओ समझो प्रेम अगन
अब तो बरसो आयो सावन
घने बादलो में छिपे रस्ते खोये
पिया आगमन को नयन टटोहे
अखियाँ पिया के स्वप्न सजोये
यह विरह की घड़िया खटके मोहे
लागी मोहे प्रिय की ऐसी लगन
हो मिलन करो कुछ ऐसा जतन
निरी प्रतिछा में न टूटे यह तन
अब हवाओं आओ पीह के संग
घटाओ बनो तुम आज दर्पण
जिसमे दिखे बस मेरे सजन
झरोखों से आती ऐ मंद पवन
अब तो समझो तुम मेरा मन
कभी तो समझ मेरा मन
घिरी घटाओ समझो प्रेम अगन
अब तो बरसो आयो सावन
घने बादलो में छिपे रस्ते खोये
पिया आगमन को नयन टटोहे
अखियाँ पिया के स्वप्न सजोये
यह विरह की घड़िया खटके मोहे
लागी मोहे प्रिय की ऐसी लगन
हो मिलन करो कुछ ऐसा जतन
निरी प्रतिछा में न टूटे यह तन
अब हवाओं आओ पीह के संग
घटाओ बनो तुम आज दर्पण
जिसमे दिखे बस मेरे सजन
झरोखों से आती ऐ मंद पवन
अब तो समझो तुम मेरा मन
No comments:
Post a Comment