Monday, March 12, 2012

सिपाही

मै वतन का हूँ सिपाही 
जो सरहदों पर है दिखता

है मौत जिसे मंजूर 
जो दौलत पर नहीं बिकता
हुआ दर्द से विचलित 
पर दर्द नहीं दिखता
पर आँसुओं की स्याही से
मै प्रेम संदेश लिखता
हरने को दुःख मेरा
कोई एक कदम न बढ़ता
और मै घाव भरे कदमो से
इतिहास नया रचता
सगे और संबंधी का सनिध्य
तुम्हे सदा जचता
सोचो मुझे नवजात शिशु कि
झलक भी न मिलता
वतन के नाम हर सुबह
हर शाम सरहदों पे कटता
हमारा हर वक्त वही
जहा रोज़ मौत का मंज़र दिखता
पर खुश हूँ की कुर्बानियो से
अमन चैन है छलकता
बिना औलाद के कांधे
जिसके पिता का जनाजा है निकलता
मेहेंदि उतरने से भी पहले
मेरे दाम्पद में मातम है पसरता
मै हूँ जो माँ कि ममता को
चोटिल हो बोझिल करता
नन्हे शिशुओं कि आँखों में
स्वप्न बन कर ही विचरता
हुये शहीद से गर्दिशो में तबदील
तुम्हे क्या फर्क पड़ता
मै वतन का हूँ सिपाही
जो सरहदों पर है दिखता
वतन के नाम हर सुबह
हर शाम सरहदों पे कटता

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