आज पीछे मुड़ के देखता हूँ,
कैसे यह सफर तय किया सोचता हूँ
कौन कौन हम राह थे मेरे,
वजह जिनके दूर हुए थे अंधेरे,
मेरी थकान में बंने जो राहत
दी दर्दे दवा जब रहा मै आहत!
पुराने धुँधली सी तसवीर उभर आती है!
और यह आँखें अश्रु से भर जाती है!
बीते दिनों में कहा गए वे सारे,
जिन्हें भूल गया, वे अपने थे सारे!
इतने अपने कि कहूँ राजदार हम्हारे!
हुये आँखों से ओझल मै खड़ा किनारे!
ढुंढता फिर से, दिल दिल से पुकारे!
मेरे वजूद के गवाहों का पता बता रे!
आज फिर मै अपनों को तलाशता हूँ!
कैसे भूल गया ख़ुद से ही पूछता हूँ!
बिना जिनके एक पल भी था दूभर!
आज नहीं उनकी कोई खोज ख़बर!
क्या समय ऐसे भी बदल जाता है!
कोई अपना भी यादों से ओझल हो जाता है!
आज इस फितरत पर बड़ा हैरान हूँ!
अपनी ही सही पर हक़ीक़त से परेशान हूँ!
आज पीछे मुड़ के देखता हूँ,
कैसे यह सफर तय किया सोचता हूँ
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