विचार कब कहा कैसे आते है! | ||
यह तो मुझको पता नहीं! | ||
पर मन में हलचल दे जाते है! | ||
जिसकी कोई इंतिहा नहीं! | ||
कुछ के जबाब मिल पाते है! | ||
पर कुछ की सूरत पता नही! | ||
जिज्ञासा में कब हम थक जाते है! | ||
मन भीतर निश्चित व्यथा नहीं! | ||
कुछ विचार प्रफुल्लित कर जाते है! | ||
सदैव मन मंथन की प्रथा नहीं! | ||
खट्टे मीठे अनुभव अपनी बुनियादे है! | ||
जो परिणामो से लापता नहीं! | ||
झंझावर विचारों का सब कहा सफल हो पाते है! | ||
पुना प्रयत्न करना है मुझको, | ||
असफलता कोई खता नही!
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जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Sunday, January 22, 2012
विचार
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