Friday, January 20, 2012

हर दर्द बेदर्द


किसी के दर्द से अगर दर्द होता!
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता!
न तुम दुखाते दिल मेरा!
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता!
तेरी टीस मेरी आह होती!
सोचो जब एक ही राह होती!
तो उसे अपनाने में कोई हर्ज ना होता!
हमसे पनपा जमी पर कोई मर्ज ना होता!
न तुम दुखाते दिल मेरा!
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता!
जुबान की कालिख होती इंद्र्धनुश!
यू लुप्त न होता धरा से मनुस्य!
आँखों में अश्रु खुशियो के बह्ते!
मै कि जगह हम शकुन से रहते!
बेबुनियादी बाते ना उभरती!
असल मुद्दे पर आते,
ना तेरी ही गलती ना मेरी ही गलती!
मौके बेमौके मेरी कमी तूझे खलती!
मुझे तेरी आहट से राहत ही मिलती!
किसी को किसी कि बाते ना चुभती!
अंधेरगर्दी पर किसी का तर्ज ना होता!
गुनाहो का खाता यु दर्ज न होता! 
न तुम दुखाते दिल मेरा!
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता!
किसी के दर्द से अगर दर्द होता!
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता!

4 comments:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

मंगलवार 18/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर ।

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma said...

बहुत ही अच्छी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद।

dr.mahendrag said...

दर्द का भी अपना अफसाना होता है ,अलग अलग दर्द अलग अलग कसक, पर अब क्या हो?सुन्दर