किसी के दर्द से अगर दर्द होता! |
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता! |
न तुम दुखाते दिल मेरा! |
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता! |
तेरी टीस मेरी आह होती! |
सोचो जब एक ही राह होती! |
तो उसे अपनाने में कोई हर्ज ना होता! |
हमसे पनपा जमी पर कोई मर्ज ना होता! |
न तुम दुखाते दिल मेरा! |
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता! |
जुबान की कालिख होती इंद्र्धनुश! |
यू लुप्त न होता धरा से मनुस्य! |
आँखों में अश्रु खुशियो के बह्ते! |
मै कि जगह हम शकुन से रहते! |
बेबुनियादी बाते ना उभरती! |
असल मुद्दे पर आते, |
ना तेरी ही गलती ना मेरी ही गलती! |
मौके बेमौके मेरी कमी तूझे खलती! |
मुझे तेरी आहट से राहत ही मिलती! |
किसी को किसी कि बाते ना चुभती! |
अंधेरगर्दी पर किसी का तर्ज ना होता! |
गुनाहो का खाता यु दर्ज न होता! |
न तुम दुखाते दिल मेरा! |
न मेरा दिल भी खुदगर्ज होता! |
किसी के दर्द से अगर दर्द होता! |
तो यकीनन हर दर्द बेदर्द होता! |
जीवंत सच्चाइया जिन्हें देख कर भी हम अनदेखा कर देते है उन्हीं सच्चाइयो के झरोखे में झाँकने को मजबूर मेरा मन और उस मन कि व्यथा अपने ही जैसों को समर्पित करना ही मेरा उद्देश्य है, और मेरा निवेदन है कि मेरी सोच में जो अधुरापन रह भी गया है उस पर आप लोगो की कीमती टिप्पणी यदि समय समय पर मिलती रहे तो शायद कोई सार्थक तत्व समाज कि जागरूकता में योगदान दे सके!
Friday, January 20, 2012
हर दर्द बेदर्द
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4 comments:
मंगलवार 18/03/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
आप भी एक नज़र देखें
धन्यवाद .... आभार ....
सुंदर ।
बहुत ही अच्छी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद।
दर्द का भी अपना अफसाना होता है ,अलग अलग दर्द अलग अलग कसक, पर अब क्या हो?सुन्दर
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