तुम क्यू खो गए हो,
इस जगत की भीड़ में!
खड़े भी नहीं हो सकते,
क्या हो गया रीड़ में!
बेमानी कि राह चले,
क्यू सेंध लगी जमीर में!
क्यू ऐसी ख़ुदगर्जी है,
की बेदर्द हुए पराई पीर में!
सोच के परे जो बदनसीबी,
आई वह घड़ी देश की तक़दीर में!
पहचान खो चुके तुम अपनी,
अन्तर नहीं तुममे और फ़कीर में!
तुम क्यू खो गए हो,
इस जगत की भीड़ में!
No comments:
Post a Comment