Tuesday, November 29, 2011

“दलदल “

देशहित पर आस्था, सदभाव का रास्ता !
सेवा का भाव और जनता से वास्ता !
यह उसूल राजनीति के, पर कौन इसे निभाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !
फायेदे कि नीति कायेदे पर भारी है !
जनता का शोषण खुल के जारी है !
नाम का चुनाव लुट की तैयारी है !
गर्व से कहते है अब मेरी भी बारी है !
थक के हाफ्ता, बड़ती महंगाई से कापता !
बेबस हो चिल्लाता पर न सुने कोई दास्ता !
यह हालात आम जनता के, कौन मल्हम लगाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !
अब सत्ता पर आस्था, दबंगई का रास्ता !
लूट का भाव और निजिहित से वास्ता !
नए उसूल राजनीति के, हर नेता इसे निभाता है !
हर दल में दलदल है हर नेता लूट के चला जाता है !

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