Monday, September 5, 2011

विजयश्री


आशाओं के नए परवान चढ़ेंगे यह ही अब नव आशा है!
अपनी उम्मीदें होंगी पूरी बस इतनी सी अभिलाषा है!
राह कर मंज़िल कि ओर छट रहा व्याप्त कुहासा है!
दूर कर साथी, अब तक जो अंतर्मन में छाई हताशा है!
बरस रही परिवर्तन की बारिश अब काहे तू प्यासा है!
होगी भोर निकलेगा रवि जो अभी बादलो में छुपा छुपा सा है!

रख विश्वास, होंगे सपने पूरे अपने, काहे को जिज्ञासा है!
बस कर्म कि राह छोड़ नही, यही विजयश्री कि परिभाषा है!
विजयी होगा, पर दुजे का हक छीन नही वह तो एक पिपासा है!
आशाओं के नए परवान चढ़ेंगे यह ही अब नव आशा है!
अपनी उम्मीदें होंगी पूरी बस इतनी सी अभिलाषा है!

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